बटुकेश्वर दत्त का जीवन परिचय
★★★ जन्म :
18 नवम्बर 1910 ,ग्राम-औरी, जिला - नानी बेदवान (बंगाल)
★★★ स्वर्गवास :
20 जुलाई 1965 ,नई दिल्ली
★★★ उपलब्धियां :
भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार की ओर से पब्लिक सेफ्टी बिल और ट्रेड डिस्प्यूट बिल लाया गया था, जो इन लोगों के विरोध के कारण एक वोट से पारित नहीं हो पाया। बटुकेश्वर दत्त एक प्रसिद्ध क्रान्तिकारी हैं जिनका जन्म नवम्बर, 1908 में कानपुर में हुआ था। उनका पैत्रिक गाँव बंगाल के बर्दवान ज़िले में था, पर पिता गोष्ठ बिहारी दत्त कानपुर में नौकरी करते थे। बटुकेश्वर ने 1925 ई. में मैट्रिक की परीक्षा पास की और तभी माता व पिता दोनों का देहान्त हो गया।
इसी समय वे सरदार भगतसिंह और चन्द्रशेखर आज़ाद के सम्पर्क में आए और क्रान्तिकारी संगठन हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसियेशन के सदस्य बन गए। सुखदेव और राजगुरु के साथ भी उन्होंने विभिन्न स्थानों पर काम किया।प्रतिशोध की भावना:विदेशी सरकार जनता पर जो अत्याचार कर रही थी, उसका बदला लेने और उसे चुनौती देने के लिए क्रान्तिकारियों ने अनेक काम किए।
काकोरी ट्रेन की लूट और लाहौर के पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या इसी क्रम में हुई। तभी सरकार ने केन्द्रीय असेम्बली में श्रमिकों की हड़ताल को प्रतिबंधित करने के उद्देश्य से एक बिल पेश किया। क्रान्तिकारियों ने निश्चय किया कि वे इसके विरोध में ऐसा क़दम उठायेंगे, जिससे सबका ध्यान इस ओर जायेगा।असेम्बली बम धमाका:8 अप्रैल, 1929 ई. को भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दर्शक दीर्घा से केन्द्रीय असेम्बली के अन्दर बम फेंककर धमाका किया। बम इस प्रकार बनाया गया था कि, किसी की भी जान न जाए। बम के साथ ही ‘लाल पर्चे’ की प्रतियाँ भी फेंकी गईं।
जिनमें बम फेंकने का क्रान्तिकारियों का उद्देश्य स्पष्ट किया गया था। दोनों ने बच निकलने का कोई प्रयत्न नहीं किया, क्योंकि वे अदालत में बयान देकर अपने विचारों से सबको परिचित कराना चाहते थे। साथ ही इस भ्रम को भी समाप्त करना चाहते थे कि काम करके क्रान्तिकारी तो बच निकलते हैं, अन्य लोगों को पुलिस सताती है।आजीवन कारावास:भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त दोनों गिरफ्तार हुए, उन पर मुक़दमा चलाया गया। 6 जुलाई, 1929 को भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने अदालत में जो संयुक्त बयान दिया, उसका लोगों पर बड़ा प्रभाव पड़ा। इस मुक़दमें में दोनों को आजीवन कारावास की सज़ा हुई। बाद में लाहौर षड़यंत्र केस में भी दोनों अभियुक्त बनाए गए।
इससे भगतसिंह को फ़ाँसी की सज़ा हुई, पर बटुकेश्वर दत्त के विरुद्ध पुलिस कोई प्रमाण नहीं जुटा पाई। उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा भोगने के लिए अण्डमान भेज दिया गया। रिहाई:इसके पूर्व राजबन्दियों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार के लिए भूख हड़ताल में बटुकेश्वर दत्त भी सम्मिलित थे। यही प्रश्न जब उन्होंने अण्डमान में उठाया तो, उन्हें बहुत सताया गया। गांधीजी के हस्तक्षेप से वे 1938 ई. में अण्डमान से बाहर आए, पर बहुत दिनों तक उनकी गतिविधियाँ प्रतिबन्धित रहीं। 1942 के ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में भी उन्हें गिरफ्तार किया गया था। छूटने के बाद वे पटना में रहने लगे थे।निधन:एक दुर्घटना में घायल हो जाने के कारण 19 जुलाई, 1965 को दिल्ली में बटुकेश्वर दत्त का देहान्त हो गया।
इसी समय वे सरदार भगतसिंह और चन्द्रशेखर आज़ाद के सम्पर्क में आए और क्रान्तिकारी संगठन हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसियेशन के सदस्य बन गए। सुखदेव और राजगुरु के साथ भी उन्होंने विभिन्न स्थानों पर काम किया।प्रतिशोध की भावना:विदेशी सरकार जनता पर जो अत्याचार कर रही थी, उसका बदला लेने और उसे चुनौती देने के लिए क्रान्तिकारियों ने अनेक काम किए।
काकोरी ट्रेन की लूट और लाहौर के पुलिस अधिकारी सांडर्स की हत्या इसी क्रम में हुई। तभी सरकार ने केन्द्रीय असेम्बली में श्रमिकों की हड़ताल को प्रतिबंधित करने के उद्देश्य से एक बिल पेश किया। क्रान्तिकारियों ने निश्चय किया कि वे इसके विरोध में ऐसा क़दम उठायेंगे, जिससे सबका ध्यान इस ओर जायेगा।असेम्बली बम धमाका:8 अप्रैल, 1929 ई. को भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने दर्शक दीर्घा से केन्द्रीय असेम्बली के अन्दर बम फेंककर धमाका किया। बम इस प्रकार बनाया गया था कि, किसी की भी जान न जाए। बम के साथ ही ‘लाल पर्चे’ की प्रतियाँ भी फेंकी गईं।
जिनमें बम फेंकने का क्रान्तिकारियों का उद्देश्य स्पष्ट किया गया था। दोनों ने बच निकलने का कोई प्रयत्न नहीं किया, क्योंकि वे अदालत में बयान देकर अपने विचारों से सबको परिचित कराना चाहते थे। साथ ही इस भ्रम को भी समाप्त करना चाहते थे कि काम करके क्रान्तिकारी तो बच निकलते हैं, अन्य लोगों को पुलिस सताती है।आजीवन कारावास:भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त दोनों गिरफ्तार हुए, उन पर मुक़दमा चलाया गया। 6 जुलाई, 1929 को भगतसिंह और बटुकेश्वर दत्त ने अदालत में जो संयुक्त बयान दिया, उसका लोगों पर बड़ा प्रभाव पड़ा। इस मुक़दमें में दोनों को आजीवन कारावास की सज़ा हुई। बाद में लाहौर षड़यंत्र केस में भी दोनों अभियुक्त बनाए गए।
इससे भगतसिंह को फ़ाँसी की सज़ा हुई, पर बटुकेश्वर दत्त के विरुद्ध पुलिस कोई प्रमाण नहीं जुटा पाई। उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा भोगने के लिए अण्डमान भेज दिया गया। रिहाई:इसके पूर्व राजबन्दियों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार के लिए भूख हड़ताल में बटुकेश्वर दत्त भी सम्मिलित थे। यही प्रश्न जब उन्होंने अण्डमान में उठाया तो, उन्हें बहुत सताया गया। गांधीजी के हस्तक्षेप से वे 1938 ई. में अण्डमान से बाहर आए, पर बहुत दिनों तक उनकी गतिविधियाँ प्रतिबन्धित रहीं। 1942 के ‘भारत छोड़ो आन्दोलन’ में भी उन्हें गिरफ्तार किया गया था। छूटने के बाद वे पटना में रहने लगे थे।निधन:एक दुर्घटना में घायल हो जाने के कारण 19 जुलाई, 1965 को दिल्ली में बटुकेश्वर दत्त का देहान्त हो गया।
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